आईये पढ़ते हैं सोनभद्र मानव सेवा आश्रम ट्रस्ट के संस्थापक गौतम विश्वकर्मा द्वारा लिखित कविता।

 
 
                        कहाँ - कहाँ ठहरना है?

इस जमाने से हीं हमको कुछ सीखना है,
इस जमाने के अनुसार हमको चलना है।
क्योंकि इस जमाने में हीं हमको रहना है।।
ना झूठ बोलना पड़े,
ना सच को खोलना पड़े।
तजुर्बा जब नहीं था गवांया,
अब मुश्किलों से क्या डरना है।।
क्योंकि इस जमाने में ......।।
इन आँसुओं का क्या करूँ,
अब तो कोई तालाब नहीं भरना है।
इस सफर में मुझे कुछ नहीं पता है,
राही तू हीं बता,
कहाँ - कहाँ ठहरना है?


                               - गौतम विश्वकर्मा
                          संस्थापक/राष्ट्रीय अध्यक्ष   
                    सोनभद्र मानव सेवा आश्रम(ट्रस्ट)



                       -अरुण कुमार गुप्ता की रिपोर्ट 

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