नौगढ़ - चंदौली
एक तरफ मरीजों का यह हाल है दूसरी तरफ अच्छे डॉक्टर से छोटे अस्पताल भी तेजी से फैलते हुए स्वास्थ्य के बाजारीकरण और निजी करण की वजह से त्रस्त हैं हाल ही के जमीनी स्तर के साक्ष्यों को देखते हुए यह पता चल रहा है कि निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के मनमाने ढंग से मरीजों से लिए जा रहे पैसों से अधिकांश जनता अपने जमीन, गहने व संपत्ति को गिरवी रखने तथा अमानवीय ढंग से कर्ज दाता का कार्य करने पर मजबूर होना पड़ता है जिससे समाज में गरीबी एवं असमानता और बढ़ती जा रही है। एक तरफ सरकारी अस्पतालों में जहां सुविधाओं व स्टाफ की जरूरत है वहीं निजी अस्पतालों में भी नियंत्रण रखने की जरूरत है। संस्थान की नीतू सिंह ने बताया कि गुणवत्ता विहीन सुविधाएं, पर्याप्त जगह, स्वच्छता, प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारी जरूरत ना होते हुए भी किए जा रहे उपचार, अनावश्यक ऑपरेशन नैतिकता का उल्लंघन मरीजों की सहमति ना लेना खर्चों के बिल ना देना, मरीजों के साथ गलत व्यवहार, अनदेखी करना आदि समस्याओं से आए दिन मरीज गुजर रहे हैं।
कहा कि इस परिस्थिति को बदलने के लिए हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करना होगा और निजी करण को आवश्यक रूप से रोकना होगा लेकिन उसके साथ-साथ निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का सामाजिक तौर पर नियमन करना भी आवश्यक है इस दौरान सरकार से मांग की गई कि निजी अस्पतालों में मरीजों के अधिकार को लेकर अस्पतालों की जवाबदेही तय हो निजी अस्पतालों के नियंत्रण हेतु उत्तर प्रदेश में क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 2010 का क्रियान्वयन सुनिश्चित हो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रेषित हेल्थ चार्टर को उत्तर प्रदेश में लागू किया जाए मरीजों के हक को सुरक्षित करने का प्रावधान हो तथा निजी अस्पतालों में मरीजों के अधिकारों का उल्लंघन होने पर शिकायत दर्ज करने का फोरम बनाया जाए।
इस दौरान सुरेंद, मदन मोहन, रामबली, रामविलास, तेतरा बानो, संगीता, सुनीता, मराछी सहित दर्जनों लोग उपस्थित रहे।
-ब्लॉक ब्यूरो चीफ मदन मोहन की रिपोर्ट
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