वो लोबान की खुशबू मीरा की भजन : अनूप कुमार श्रीवास्तव
इजाजत मुहब्बत की यूहीं नहीं मिलतीं,
जब तक नही गिरतीं दिल पे बिजलियां ।1
हुश्नोंअदाएं उनकीं छलावों का शहर है ,
बचातें रहें मकां हुई पत्थरों की आंधियां।2
सुकून ओ चैन के यहाँ सब है दिवानें ,
इसी की तलाश में ही बीत गई सदियाँ।3
तेरे मिरे बिगैर यें दुनियाँ कहां होतीं ,
जी भर के जंग हुई इश्क़ में लड़ाईयां।4
हम लुट गयें के बिक गयें सरे बाजार में,
आदमी के झूठें शौक में बजीं शहनाईयां।5
बड़ी हिकमत से खूबसूरत सजाई गई ,
माथें सजीं है बिंदियां कानों में बालियां।6
मन बन गया जबसे ये वृंदावन मेरा,
राधा सी घूमतीं हो वो लेकर गोपियां।7
अरसा हुआ फ़लक पे महताब को देखें ,
दिखनें लगा शहर में इधर चाँद दूधियां।8
वों लोबान की खुशबू है मीरा के भजन सीं,
करतीं है मन ही मन में जमके यूही डांडिया।9
काँधे पे किसी के चढ़नें को राज़ी नहीं है,
कब तक बनें रहेंगे सियासतीं बैसाखियां।10
शेरोसुखन का शौक़ भी औ बे अदब भी ,
पसीने-पसीने हुऐं बैठातें रदीफ क़ाफिया
महफ़िलें अदब में आएं है यू फकीर भी ,
खजाने में इश्क़ है कासे में सिसकियाँ।10
-अनूप कुमार श्रीवास्तव
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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