सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना - मेरी कल्पना
(मेरी कल्पना)
कल्पनाओं में मैं परमधाम जाती।
वहां से देवीय शक्ति पाकर आती।
देश मेरा घिरा विकट समस्याओं में,
चुन-चुन कर हर एक को निपटाती।
बहुभाषी है यह भारत देश हमारा ।
हर प्रांत हर क्षेत्र का अपना नारा ।
पंजाबी तमिल तेलुगु या बंगला,
भाषा भेद समस्या से देश है हारा ।
क्षेत्रवादिता की भी समस्या है भारी ।
भाषा संस्कृति जाति की बलिहारी ।
क्षेत्रीय विवाद जब बढ़ जाते हैं,
अशांत जनजीवन होता कष्टकारी ।
जनसंख्या वृद्धि भी है आफत बड़ी।
सुविधाएं सीमित पाने को भीड़ खड़ी।
यदि इंसान अब भी न स्वयं चेतेगा,
जल्दी ही आ जाएगी विस्फोटक घड़ी।
बेरोजगारी तो देश की बड़ी बीमारी।
शिक्षित अशिक्षित जूझे सब नर नारी ।
प्रलोभन देकर भटका रहे इनको,
आतंकवादी विरोधी और भ्रष्टाचारी ।
महंगाई तो हो गई है समस्या विकट ।
गरीब जनता पर पड़ा गहरा संकट ।
आय सीमित खर्चे मुँह फाड़े खड़े,
अलादीन चिराग का जिन्न हो प्रकट।
भ्रष्टाचार अशिक्षा और अंधविश्वास।
इनके रहते मुश्किल होता विकास।
रूढ़िवादिता दहेज स्थिति सोचनीय,
चक्रव्यूह पार करने की है पूर्ण आस ।।
सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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