आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका जी द्वारा लिखी रचना- मधुशाला
"मधुशाला"
मेरे अंदर भी है एक मधुशाला ।
ख्याल मेरे बने हैं साकीबाला ।
जज्बात समंदर लेता हिलोरे,
कलम परोसे कागज पर हाला ।
लम्हे जो आज बने साकी हैं ।
जिंदगी में वही रहते बाकी हैं ।
तसव्वुर में है ठिकाना उनका,
जग में यूँ तो सब एकाकी हैं ।
नशे की आदत सी पड़ जाती ।
दिनोंदिन यह बढ़ती ही जाती।
मिले नहीं कभी चैन पल-भर ,
लगे हर राह मयकदे को जाती ।
दिमाग में बसा एक जुनून सा ।
मिलता उससे एक सुकून सा ।
हालत हुई आदी शराबी सी,
मय के लिए दिल ममनून सा ।।
-सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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