नशा नाश का कारण : सरिता सिंह
(लघु कथा)
अस्पताल के बेड पर अंतिम सांसे गिन रहे किशन को देख मौसी इंद्रावती की आंखों से निकला हर आंसू बस यही कह रहा था काश! कि बचपन में अपने लाल को डिबिया से चुपके से निकालकर तंबाकू खाते हुए रोक देती तो शायद! आज यह दिन न देखना पड़ता , कसूर मेरा ही है बचपन में तंबाकू की खुशबू से उसे छींक दिलाने का काम भी तो मैंने ही किया। हाय! ये कैंसर मेरा ही दिया हुआ है ईश्वर अब सब खत्म नशे ने सब नाश कर दिया।
-सरिता सिंह
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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