व्यंग्य- चोरी बेईमानी द्वेष ईष्या बस और क्या है : कवि विवेक अज्ञानी
(व्यंग्य)
कभी-कभी तो समझ में नहीं आता कि जीवन क्या है?
चोरी बेईमानी द्वेष ईष्या बस और क्या है?
हर तरफ़ लूट मार घूसखोरी और दलाली है
वही फूलों का भक्षक है जो बागों का माली है
लगाकर मजहबी आग यहाँ जलावाते हैं शहर
उनके बंगले बच गये जल गया रामू का घर
आओ यहाँ पुर में जले दंगो में जो घर देखिये
सलोना हो गया उनके कोठी का मंजर देखिये
गाँव में रघ्घु की हालत लाखन का रोना देखिये
उजड़ा आँधियों में छ्न्गे का घर सलोना देखिये
चाल कुछ चलकर वो घटिया बन गये फिर बादशाह
दिन प्रतिदिन निकल रही है बेबस दिलों की कितनी आह !
कवि विवेक अज्ञानी
गोंडा, उत्तर प्रदेश, भारत
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