आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी- गज़ल
(गज़ल)
सीखी हमने दुनियादारी तुमसे ।
जाना क्या होती लाचारी तुमसे ।
मर जाना आसान नहीं था मेरा,
सीखा जीने की दुश्वारी तुमसे ।
इतना सहज नहीं था सफ़र अकेले,
दुनिया से जीती पर हारी तुमसे ।
होठों को सिल कर चलते रहते हैं ,
बोली क्या मेरी खुद्दारी तुमसे ।
अपनों के तीरों से घायल 'सीमा',
देखें न गए जख्म इक बारी तुमसे ।।
-सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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