सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना- सच्ची सेवा
सच्ची सेवा
अपनी रहमतों से प्रभु
आँचल मेरा है भर दिया,
जीवन जीने के लिए
सुख सुविधा सब किया।
कृतज्ञ है तुम्हारे दाता
तेरा ॠण कैसे उतारे हम,
धरती पर सेवक बनके
कण कण को संवारें हम।
खाने को भोजन मिला
सिर पर छायी पक्की छत,
पहनने को सुंदर वस्त्र
जीवन यात्रा चले अविरत।
जीवों पर दया करें सब
बनकर उनके जैसे संरक्षक,
खाने को भोजन पानी दें
उनके बनकर जीवन रक्षक।
सारा संसार परमेश्वर का
जीवजंतु तक में बसे हैं राम,
जन-जन की सेवा सुश्रुषा
जीवन का उद्देश्य अभिराम।।
-सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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