आइये पढ़ते हैं कवि प्रदीप कुमार जी द्वारा लिखा - व्यंग्य
व्यंग्य- अभी तक सोचा नहीं
यदि गांव का सच ना लिख सकूं मैं ।
तो फिर अपना नाम कवि क्यों लिखूं मैं ।।
लिखूंगा घोटाले सारे रिश्वतखोरी वाले ।
कलम ना रोकूंगा चाहे जितने हो रोकने वाले ।।
खुले शब्द होंगे बाणो सी मानो बौछार हो ।
सुनने वाले सहे ना सहे पर वार पर वार हो ।।
खुलकर लिखना चाहता हूं आजादी का पंछी हूं ।
साथ मित्रों का चाहता हूं दुश्मनों की फांसी हूं ।।
बस आगे क्या लिखकर बताना किसी को।
अब तो काम करके दिखाना है हर किसी को ।।
- कवि प्रदीप कुमार
सहारनपुर
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