उमा शर्मा 'उमंग ' जी द्वारा लिखी रचना - स्वप्नों की दुनियाँ
(स्वप्नों की दुनियाँ)
स्वप्नों की दुनियाँ होती है निराली,
स्वप्नों में हम क्या क्या बन जाते।
जो मन में रहती चाह बढ़ने की,
तो स्वप्नों में पूरा कर आते।
मन में अंकुर फूटे विचारों ने ली तरुणाई।
कैसे होंगे पूरे, स्वप्नों ने राह दिखाई।।
कभी दिखे सपनों में, आसमान में उड़ना।
कभी वो छलांगे लगाना इधर से उधर पार करना।।
कभी परीक्षा में पेपर का छूटना, कभी कोरी कॉपी रख आना।
कभी कुछ लिख ना पाये, ऐसे ही चले आए।
यही स्वप्न दिखते जब आशाएं पूरी ना होती।
मन का क्या है स्वप्नों में ,वो तो प्रभु दर्शन भी कर आते।
लेकिन सपनों की है सांकेतिक भाषा ,
जो बतलाते जीवन की आशा।।
गरीबों के स्वप्न होते दफन मन में,
चाह कर भी न होते पूरे जीवन में।
विचरते लोक कल्पना में,
वो जीवित ही मर जाते।
हम देखें जागती आँखों से कुछ करने के स्वप्न,
एक नयी उमंग भरी जिंदगी जीने के स्वप्न।
घर में सौहार्दपूर्ण परिवार बनाने के स्वप्न।
अगर ये स्वप्न दिखें तो बन जाए हमारी जिंदगी दिवास्वप्न।
जो साकार करेगी हमारी जीवन बगिया को,
और फलेगी, फूलों सी रचेगी नयी दुनियाँ को।।
उमा शर्मा 'उमंग '
झाँसी, उo प्रo
अनुज्ञा सदस्य डॉ सत्या होप टॉक
Tags:
रचना