ज्योत्सना सिंह जी द्वारा लिखी रचना - साहित्य की छांव में
(साहित्य की छांव में)
साहित्य गीत है, साहित्य नृत्य है,
लेखनी और रंग, चित्र संग- संग,
सभी पल रहे, साहित्य की छाँव में।
किसी कवि की कल्पना का है
भाव, मीत, प्रीति, कृति, सृष्टि में
उतरते हैं भाव, साहित्य की छाँव में।
सूर, तुलसी, मीरा, अपना रहीम हैं, प्रेम और सौंदर्य, दिनकर की "उर्वशी"
सबका वांग्मय, साहित्य की छाँव में।
साहित्य ही है आईना समाज का,
दिखा रहा दर्श मानव इतिहास का,
अतीत जान रहे, साहित्य की छाँव में।
देश के लिए जिएं, देश के लिए मरें,
साथी हम लिखेंगे आज और कल,
निरंतर, अनवरत, साहित्य की छाँव में।
-ज्योत्सना सिंह
डॉ.सत्या होप टॉक (अनुज्ञा सदस्या)
आगरा, उत्तर प्रदेश
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रचना