पारितोष काव्य मंच का हिंदी चिंतन काव्य गोष्ठी संपन्न

पारितोष काव्य मंच का हिंदी चिंतन काव्य गोष्ठी संपन्न

    हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर स्व. हंसराज कक्कड़ स्मृति मंच के सानिध्य में पारितोष काव्य मंच द्वारा आनलाइन हिंदी चिंतन काव्य गोष्ठी दिनांक 13.09.2021 को भव्य और शानदार चिंतन और काव्य भावों के बीच संपन्न  हो गई।
   गोष्ठी की आयोजिका/ संचालिका आ. संगीता चौबे पँखुड़ी (इंदौर, म.प्र.) ने गोष्ठी की शुरुआत - 'हिंदी जीवन की परिभाषा, हिंदी जीवन का सार है' से अपने भावों को रेखांकित करते हुए की।
     इस आयोजन की अध्यक्षता कर रहे मंच के संस्थापक/वरिष्ठ व्यंग्यकार आ. पारितोष अरोड़ा जी (फिरोजाबाद, उ.प्र.) ने हिंदी की स्थिति के संबंध में विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि ये चिंता की बात है कि आज जब देश में 95% हिंदी बोलने वाले हैं, तब सिर्फ़ 5% लोगों द्वारा बोली जी रही अंग्रेज़ी हिंदी पर भारी है। 14.09.1949 से हम हिंदी दिवस मनाते हैं, परंतु आज भी हम हिंदी को स्थापित नहीं कर पाये हैं। इसके सामाजिक, राजनैतिक कारण हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार/कवि आ. सुधीर श्रीवास्तव ने अपने विचार रखते हुए क्षोभ प्रकट करते हुए कहा कि 74 वर्ष बाद भी हिंदी को राष्ट्र भाषा के रुप में स्वीकार्यता नहीं मिली तो इसके पीछे अब तक की सरकारों में इच्छा शक्ति की कमी, दृढ़ता का अभाव और वोट के लाभ का लोभ नहीं तो क्या है? आखिर सरकार क्यों बेबस और असहाय है। आखिर जो विवशता है, उसे समाप्त कौन करेगा? गोष्ठी में शामिल आ. तृप्ति वीरेंद्र गोस्वामी 'काव्यांशी' (जोधपुर,राजस्थान), आ. विनीता कुशवाहा जी (गोण्डा, उप्र.) और आ. ममता मनीष सिन्हा (रामगढ़, झारखंड) ने भी हिंदी दिवस पर अपने अपने विचार रखे और हिंदी को राजभाषा से राष्ट्र भाषा बनाने पर बल दिया। क्योंकि हिंदी बिना राष्ट्र भाषा के अपना अभीष्ट स्थान नहीं पा सकती।
     सभी ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को विशिष्ट बना दिया।
    आ. तृप्ति वीरेंद्र गोस्वामी 'काव्यांशी' ने
 "जन जन की हो यह अभिलाषा, हिन्द हमारा, बोले सब हिंदी भाषा। बनी रहे हिंदी हम सब की पहचान, जन जन की हो यह अभिलाषा, कभी ना लुप्त हो हमारी राष्ट्र भाषा। राष्ट्र का अस्तित्व जिस पर है टिका, ओजस्वी और तेजस्वी हिंदी मृदु भाषा। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, हर जन की जुबां पर रहे मातृभाषा" के साथ समूचे भारत की भावना का प्रकटीकरण कर दिया।
       आ.विनीता कुशवाहा जी ने हिंदी की महिमा का बखान कुछ यूँ किया- "सिंध से हिन्द हिन्द से हिंदी, भारत की राज दुलारी है, भारत मां के माथे की बिंदी, हमको जान से प्यारी है।"
     आ. ममता मनीष सिन्हा जी ने "हिंदी माँ गंगा सी पवित्र कलकल है, शीर्ष हिमालय सी सुदृढ़ अविचल है।हम काव्य दासों के लिए परमात्मा है, अक्षरभाव से लिखी हमारी आत्मा है।हर भारतवासी की हृदया माँ हिन्दी है, ये तो माँ भारती के माथे की बिंदी है।" पढ़कर हिंदी का मान बढ़ावा।
      संचालिका आ.संगीता चौबे 'पँखुड़ी' ने जन जन से ''आओ मिल कर हिंदी का मान बढ़ाएं हम, विश्व पटल पर हिंदी को पहचान दिलाएं हम, 14 सितंबर तक ही क्यों सीमित रहें हम सब, हर दिन हिंदी प्रचार अभियान चलाएं हम।।" हिंदी के लिए आवाहन किया।
   आ. कविराज पारितोष अरोड़ा जी ने अपने डर को कुछ यूँ बयां किया-थोड़ा तुम भी गर्व कर लो, थोड़ा हम भी गर्व कर लें, थोड़ा सब मिलकर गर्व कर ले, यह हिंदी हमारी सबकी ,मातृ भाषा है मेरे भाई ,साल में दो दिन इसका, चिंतन मंथन ग्रंथन से, कुछ नही होने वाला है, हमने खुद ही इसके हालात, ऐसे कर दिए है क्या बताए, हर कोई आगे जाकर हम पर, ठिठोली मारकर हंसने वाला है।
      आ. सुधीर श्रीवास्तव ने सबके लिए हिंदी की अनिवार्यता पर जोर देते हुए सरकार से कुछ यूँ कहा-अरे! सरकार, अब तो आँखें खोलो, समूचे राष्ट्र के लिए, हिंदी की अनिवार्यता की राह खोलो।"
    अंत में आ.कविराज जी ने गोष्ठी की प्रशंसा करते हुए सभी को बधाइयाँ और शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ऐसे आयोजन के लिए सभी को सहभागिता करनी चाहिए। उन्होंने ने यह भी कहा कि मंच सभी का है और मंच नये पुराने का भेद किसे ये बिना सबको आगे लाने के लिए कार्य करता रहेगा।
       अंतरराष्ट्रीय संक्षरक आ. सुधीर श्रीवास्तव जी ने गोष्ठी के समापन की घोषणा करते हुए आ. ममता मनीष सिन्हा जी (18 सितं.),आ. कविराज जी (21 सिंत.) और आ.संगीता चौबे पँखुड़ी जी (26 सितं.) को मंच की ओर से जन्मदिन की अग्रिम बधाइयाँ देते हुए जन्मोत्सव काव्य सप्ताह आयोजित किए जाने की जानकारी दी।

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