"झारखण्ड की बेटियां" भी तो हैं : ममता मनीष सिन्हा
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
जब तपते पत्थरों का क्रंदन होता है,
न मरीची सरिता का दर्शन होता है,
जब प्रथम वर्षा हरितक्रांति लाती है,
ये कष्टों में भी स्वयं को उपजाती हैं,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
सिर मुकुट कर्म का बोझ उठाए,
पीठ बांध भारती भविष्य सटाए,
आत्म साहस को सारथी बनाए,
विहंगम मार्गों को ये रौंदती जाएँ,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
निर्धनता भरे गलियारों में,
अज्ञानता भरे अंधियारों में,
जला शिक्षा का स्वर्ण ज्योत,
नित्य हीं स्वयं को प्रकाशतीं,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
नही अब निर्बल नही पराश्रिता,
नही अब लाचार नही पराधिता,
लक्ष्य मार्ग की ओर अग्रसारिता,
सर्व क्षेत्र में बनती अपराजिता,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
आदि आडंबरों को तोड़ती,
कुंठित कुविचारों को छोड़ती,
शीर्ष लक्ष्य हृदय में बांधती,
है मधुमिता निशाना साधती,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
हुई थी अपमानित कृष्णसखी,
युग द्वापर में प्रत्यक्ष राजसभा,
आज प्रतिष्ठित हैं यहां द्रौपदी,
लेकर धर्मराज की दिव्य प्रभा,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
कभी सुगंधित महुआ पलास सी,
कभी गूंजती मांदर की धुन हैं,
कभी ठुमठुमकती छऊ सी तो,
कभी सरहुल करम की धूम है,
हे विश्व!
अब यहां मात्र जंगल नही है
झारखण्ड की बेटियां भी तो हैं।
-ममता मनीष सिन्हा
तोपा, रामगढ़ (झारखंड)
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