अविवाहित रहकर देश सेवा का संकल्प लिया था भागवत प्रसाद जी ने, पढ़ें पूरी खबर

रॉबर्ट्सगंज-सोनभद्र :

देश को आजाद कराने के लिए महान क्रांतिकारियों, देशभक्तो, स्वतंत्रता सेनानी जो संकल्प लिया उसका अनुपालन आजीवन करते रहे। 
    ऐसे ही हमारी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भागवत प्रसाद दुबे रहे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की सहभागिता, देश सेवा, समाज सेवा के लिए आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया और जीवन भर इसका पालन करते रहे। 
   स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भागवत प्रसाद दुबे का जन्म सन 1938 में आदिवासी बाहुल्य गांव सलखन में हुआ था, इनके पिता का नाम पंडित भगवानदास, माता का नाम सुगंता  देवी था।
इनके माता-पिता इनका विवाह करना चाहते थे, लेकिन भागवत प्रसाद दुबे के सर पर भारत माता की हथकड़ियों, बेड़ियो को तोड़ने का जुनून सवार था और इन्होंने विवाह करने से साफ साफ मना कर दिया और कहा कि-" जब तक भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त नहीं करा देते तब तक हम शादी नही करेंगे और पूरा जीवन भारत माता को समर्पित करते हुए ये सन 1938 ईस्वी में आजादी की जंग में कूद पड़े, सन 1941 ईस्वी के सत्याग्रह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेज सिपाहियों द्वारा 129 दफा के तहत नज़रबंद कर लिया गया था और आजीवन अविवाहित रहते हुए  स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ते रहे। इस महान क्रांतिकारी का निधन 1955 ईस्वी को हो गयी। आजाद कराने के लिए  महान क्रांतिकारियों, देशभक्तो, स्वतंत्रता सेनानी जो संकल्प लिया उसका अनुपालन आजीवन करते रहे। 
    ऐसे ही हमारी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भागवत प्रसाद दुबे रहे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन की सहभागिता, देश सेवा, समाज सेवा के लिए आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया और जीवन भर इसका पालन करते रहे। 
   स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भागवत प्रसाद दुबे का जन्म सन 1938 में आदिवासी बाहुल्य गांव सलखन में हुआ था, इनके पिता का नाम पंडित भगवानदास, माता का नाम सुगंता  देवी था।
इनके माता-पिता इनका विवाह करना चाहते थे, लेकिन भागवत प्रसाद दुबे के सर पर भारत माता की हथकड़ियों, बेडियो को तोड़ने का जुनून सवार था और इन्होंने विवाह करने से साफ साफ मना कर दिया और कहा कि-" जब तक भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त नहीं करा देते तब तक हम शादी नही करेंगे और पूरा जीवन भारत माता को समर्पित करते हुए ये सन 1938 ईस्वी में आजादी की जंग में कूद पड़े, सन 1941 ईस्वी के सत्याग्रह में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अंग्रेज सिपाहियों द्वारा 129 दफा के तहत नज़रबंद कर लिया गया था और आजीवन अविवाहित रहते हुए  स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ते रहे। इस महान क्रांतिकारी का निधन 1955 ईस्वी को हो गयी।

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