बाल विवाह : बचपन मिटाने की क्या जल्दी है - सरिता सिंह

बाल विवाह : बचपन मिटाने की क्या जल्दी है - सरिता सिंह 

बाल विवाह बचपन की मुस्कान छीन लेता है।
कच्चे शरीरों का वह  जीवन  छीन लेता है।
मासूम बचपन मिटाने की बोलो क्या जल्दी है।
कोमल हाथों में हल्दी लगाने की क्या जल्दी है।
 बढ़ भी नहीं पाई जो बेल उसे मिटाने की क्या जल्दी है।
बाल विवाह बचपन की मुस्कान छीन लेता है।
कच्चे शरीरों का वह  जीवन  छीन लेता है।
मुस्कुराते फूलों को मुरझाने की क्या जल्दी है।
कच्चे फलों को असमय पकाने की क्या जल्दी है। 
 मजबूत बनने से पहले उन्हें मिटाने की क्या जल्दी है
बाल विवाह बचपन की मुस्कान छीन लेता है।
कच्चे शरीरों का वह  जीवन  छीन लेता है।
लड़का हो या लड़की दोनों को पढ़ने का अधिकार है।
बाल विवाह अपराध है यह कानून को नहीं स्वीकार है।
हाथ से पेंसिल और खिलौने छीनने की क्या जल्दी है।
बाल विवाह कर  बच्चों का जीवन बिगड़ने की क्या जल्दी है।
जो देख भी नहीं पाए थे आंखों में सुंदर सपनों को।
छोटे-छोटे बच्चों को रिश्ते में बांधने की क्या जल्दी है ।।

-सरिता सिंह
 गोरखपुर

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