सपनों की दुनिया में खो गए हम : सरिता सिंह
भूल गए हैं अपनों को इतने आधुनिक हो गए हैं।
रिश्ते रिवाज परंपराओं को कहीं भूल चुके हैं हम।
कुछ अच्छी और सच्ची बातों को पीछे छोड़ चुके हैं हम।
सुबह उठकर बड़ों का अभिवादन करना।
भोर की लाली का प्रातः में रस्वावादन करना ।
हां अब अपने बुजुर्गों की भी उंगली छोड़ चुके हैं हम।
अपने सपनों को पाने की जिद में सबको पीछे छोड़ चुके हैं
हम अपने पंख बढ़ाकर इतने ऊंचे उड़ चुके हैं।
शायद अपनों की सोच से बहुत आगे बढ़ चुके हैं।
डर है कहीं न इतनी दूर निकल जाए।
अपनों को भूलते कहीं खुद को न भूल जाए।।
-सरिता सिंह
गोरखपुर
Tags:
रचना