आइये पढ़ते हैं आरती झा जी द्वारा लिखी रचना- बारिश की नजाकत
तड़पे जियरा जैसे ग़मगीन थी बारिश,
आँसू भी बरसे जैसे नमकीन थी बारिश।
मिन्नतों में भी मेरी , छाई थी प्रशांति तेरी,
तेरा दरस चाहा ऐसे जैसे रंगीन थी बारिश।
अश्कों में एहसास की महक घुल गई थी,
इश्क में दर्दे दिल की संगीन थी बारिश।
ग़म की घटाओं ने ऐसा बांधा था शमां,
महफ़िल में देखा तो मेघहीन थी बारिश।
बाज़ारों में बिकते नहीं सुख के मौसम,
सुकूं जो तलाशा तो भावहीन थी बारिश।
-आरती झा
दिल्ली
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