शब्दों में बदल तुमको लिखते जाना : अनूप कुमार श्रीवास्तव
(कविता)
ये मेरा बेवजह ही
दीवारों से बतियाना ,
तुम्हारी राहें तकना
तुम्हें पा जाना।
कहीं कुछ खुद को टटोलना
प्याली चाय की भूल जाना,
कुछ कुछ तुम्हें
शब्दो में बदल कर
लिखतें जाना।
तुम्हें खो देना
हमें रास नहीं आता ,
बहुत अच्छा लगता है
तुम्हारा आइना बन जाना।
तुम्हीं में
आसमां बन जाना ,
तुम्हीं में समुंदर बन जाना।
छुपा के कैसे कैसे
तुम्हें यादों में लाया हूं ,
वादों में लाया हूं ।
हकीकत इतनी सी है
तुम्हें भूल कब पाया ,
पराया अजनबी रिश्ता
हमें कुछ नहीं कहना ।
हमारी सूब्हो शाम की
इक प्याली चाय जैसी ,
सुकुन दिन भर की लगती है।
कभी जब चांद कोई
लहरों में उतरतें देखता हूं ,
तुम्हारी खामोशियां कैसी
तुम्हें संवरतें देखता हूं ।
तुम्हारा अंदाज अपना है ,
हमारा अंदाज अपना है ,
सभी के जीने का अंदाज़
अपना अपना है।
-अनूप कुमार श्रीवास्तव
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