अर्चना कोहली जी द्वारा लिखी
कहानी- आज तो मेरी दावत हो गई
"साढ़े सात बज गए हैं, अभी तक आपकी लाडली बहू का पता नहीं। रोज़ तो छह, साढ़े छह बजे तक आ जाती है।" राधिका ने बड़बड़ाते हुए अपने पति शेखर से कहा।
"आज सुबह भावना ने कहा तो था, आज आने में देरी हो जाएगी। तुम तो जरा-जरा सी बात पर आसमान सिर पर उठा लेती हो।"
"पर मैंने भी तो कहा था देर मत करना, जल्दी आ जाना। तभी तो मैं रोहित की शादी घरेलू लड़की से चाहती थी। रोहित की जिद के कारण ही ऐसा करना पड़ा। अब कब बहूरानी आएगी और कब खाना बनेगा!"
"तुम्हें तो बस बहूरानी की बुराई करने का कोई अवसर चाहिए। आ जाएगी।"
"ऐसा करो, आज तुम ही दाल-चावल बना लो। मैं भी इसमें तुम्हारी मदद कर देता हूँ।"
"अब इस उम्र में खाना बनाऊँ! कैसे दिन आ गए हैं। सही ही कहा है, बहू का सुख किस्मतवालों को मिलता है।"
"तुमको तो बात का बतंगड़ बनाने की आदत है। काम करने से ठीक ही रहोगी। जुबान की जगह थोड़े हाथ-पैर भी चला लिया करो।"
"आपसे तो बात करना ही बेकार है।"
"क्या कमी है बहू में। बिना कहे सारे काम करती है। तुम्हें कोई भी काम नहीं करने देती। ऑफिस जाते समय सारे काम करके जाती है। बर्तनवाली को दोपहर के लिए रोटी और शाम को चाय बनाकर जाने को कहा हुआ है। और क्या चाहिए! ऐसी बहू तो किस्मत से ही मिलती है। ज़रूर हमने पिछले जन्म में कोई अच्छे कर्म किए होंगें तभी तो ऐसी बहू मिली है। हर समय मम्मी-पापा करती रहती है।"
"यह तो उसका फ़र्ज़ है।"
"सारे फ़र्ज़ तो बहुओं के ही होते हैं। सास का तो कोई फ़र्ज़ नहीं होता!"
"क्या मतलब!"
"कभी प्यार से बहू से बात की है। बेटी की तरह उसको समझा है। जब देखो उसपर हुकुम चलाती रहती हो। आज के जमाने में बेटियाँ भी नहीं सुनती हैं। उसे बेटी समझोगी तो सब आसान हो जाएगा।"
"किस बात पर बहस हो रही है, रोहित ने पूछा।"
"कुछ नहीं रोहित बेटा। आज अभी तक बहू नहीं आई है। क्या खाना बनाना है, उस बारे में सोच रहे हैं।" पिताजी ने बात बदलते हुए कहा।
"भावना आने ही वाली है। अभी फोन पर बात हुई है। मैं दाल-चावल बना देता हूँ। मम्मी आप बता देना।"
"भावना आने ही वाली है तो वही बना देगी"। राधिका ने कहा।
"वह भी तो थकी होगी।"
"अब तू लड़का होकर खाना बनाएगा!"
"आज लड़के-लड़की में कोई अंतर नहीं है। सब बराबर हैं।"
"यह पट्टी भी तुझे उसी ने पढ़ाई होगी।"
"माँ , कैसी बात कर रही हो!"
"यह नहीं सुधरेगी। ऐसा कर बेटा। आज
बाहर से ही खाना मँगवा लेते हैं।"
"पर पिताजी आप तो बाहर का खाना कम ही खाते हैं।"
कभी-कभी बाहर का खाना खाने से कुछ नहीं होगा। कभी कभी चेंज भी आवश्यक होता है। भावना को आने दो। फिर मँगवाते हैं।"
"ठीक है पिताजी।"
"क्या मँगवाने की बात हो रही है"। तभी भावना की आवाज़ आई।
"अरे! तुम आ गई। खाना बाहर से मँगवाने की बात कर रहे थे।" रोहित ने कहा।
"कुछ मँगवाने की जरूरत नहीं है। फटाफट खाना बना देती हूँ।" भावना ने कहा।
"बहू, ऐसा मत कर। बड़ी मुश्किल से तो तुझे रसोई से छुटकारा दिलवाने का अवसर मिला है। अब जल्दी से फ्रेश होकर आ जा। फिर तय करते हैं, क्या मँगवाना है।"
"पर पिताजी।"
"पर वर कुछ नहीं। वैसे भी तेरी सास का मन बहुत दिनों से बाहर के खाने का कर रहा था। बहुत चटोरी है यह।"
"मैंने कब कहा। कुछ तो शर्म करो।"
"मैं तो मजाक कर रहा था। आखिर बहू भी अब घर की सदस्या है।"
आप सबको जो पसंद हो मँगवा लीजिए। तब तक मैं तरोताजा होकर चाय बनाती हूँ। बहुत थक गई हूँ।" भावना ने कहा।
"तुम तरोताजा होकर आओ। आज मैं सबके लिए इलायची-अदरक वाली चाय बनाता हूँ ।"
"आपको चाय बनानी आती है!"
"तुम्हारे जैसी अच्छी तो नहीं। तुम फ्रेश होकर तो आओ। फिर सब चाय पीते- पीते खाना क्या मँगवाना है, तय करेंगे।"
"मेरी तो आज दावत हो गई।" भावना ने हँसते हुए कहा।
-अर्चना कोहली
नोएडा (उत्तर प्रदेश)
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