आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी रचना- मेरी मनसा
यह मेरी मनसा मात्र कल्पना नहीं ।
अटूट विश्वास भी सदा रहा कहीं ।
विपत्तियां आए भला कितनी भी,
संभालता ईश्वर सब बिगड़ी वही ।
विपदाओं का पहाड़ होता सामने ।
मन का धीरज तब लगता हारने ।
अंधेरे में रोशनी की किरण बन,
प्रकट होता अदृश्य प्रभु थामने ।
सुख का वक्त बीत जाता पलों में ।
दुःख बैठ जाता भाल के बलों में ।
भरी भीड़ में अकेले हो जाते सब ,
आसक्त होता ध्यान मात्र फलों में ।
परमपिता परमेश्वर की संतति सब ।
बच्चों की पीड़ा पर प्रभु द्रवित तब ।
जिसने ईश्वर को रक्षक मान लिया,
उनके समस्त कष्टों को हर लो अब ।।
-सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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