आइये पढ़ते हैं सीमा वर्णिका द्वारा लिखी कहानी - उपहार
उपहार
जन्मदिन पर उपहार में दादा जी से दो हजार रुपए पाकर रीता के पांव खुशी के मारे जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह मन ही मन सोच रही थी कि वह इन पैसों को किस तरह से खर्च करेगी । वैसे भी किशोर मन कल्पना से भरपूर होता है।
कॉलबेल बजी उसने देखा उसकी सहेली मीना आई थी। उसका मन अपने जन्मदिन पर अपनी प्रिय सहेली को देख कर खुश हो गया ।
कैसी हो मीना," रीता ने चहकते हुए पूछा-
'ठीक हूँ' उसने दबी जबान में उत्तर दिया।
अरे! क्या हुआ? कोई बात है क्या? इतनी उदास क्यों हो? प्रश्नों की झड़ी लगा दी रीता ने।
मीना की आँखें भर आयीं वह बात टालने लगी। पर रीता कहाँ मानने वाली थी । उसके बहुत आग्रह पर मीना बोली," तुझे तो पता है कल इंटर के फॉर्म भरने की अंतिम तिथि है। माँ बाबूजी से रोज कह रही हूँ पर वह फीस जमा नहीं कर पा रहे। बाबूजी के नौकरी छूट गई है। वैसे ही घर में पैसे की तंगी थी। रीता मेरा पढ़ने का सपना अधूरा रह जाएगा।" यह कह मीना फफक फफक कर रोने लगी ।
रीता ने मीना को सीने से लगा लिया और बोली," मेरी प्यारी बहन मेरे रहते कैसे तेरा सपना अधूरा रह जाएगा"। मीना आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगी वह सोच रही थी, यह मेरी सहपाठी मेरी मदद कैसे करेगी। रीता अंदर कमरे में गई वापसी में उसके हाथ में दादा जी का लिफाफा था ।उसने वह मीना की ओर बढ़ा दिया। रीता का अंतर्मन एक सुखद एहसास से भर उठा था। उसका जन्मदिन सार्थक हो गया था।
-सीमा वर्णिका
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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