भारती रत्न सुभाष : मीरा भारती
युवा-वीर सुभाष हैं, भारती के श्रृंगार,
पिता ने तजी थी, उपाधि 'रायबहादुर' ।
विद्रोही आत्मज लेते हैं आत्मसंकल्प,
राष्ट्र-सेवा से इतर, गुण -धर्म है स्वल्प ।
विदेश -सेवा चयनित, करें त्याग सत्वर,
पितृआशीष, 'विचलित न हो, तेरा समर' ।
विश्व-साम्राज्य-विरोधी था, जिनका मुहिम,
बापू-विचार प्रेरित होते, देते सेवा सप्रेम।
होता गाँधी से विभेद, कांग्रेस से मोहभंग,
करते रक्त लेकर, देश-मुक्ति से सत्संग।
सुभाष हों प्रथम, मुक्त फ़ौज-अभियानी,
परंतप वे आतुर, सहज संवेगी-गतिमानी ।
बापू-मन के नेता, सुभाष हैं बहु-आयामी,
किया यवन-स्तम्भ ध्वंस, माँ को दीसलामी।
भारती का आदेश, युवा-तनय करते पूर्ण,
विदेश में बनी, स्वदेश-सरकार, भावपूर्ण।
क्रांतिवीर मंगल-जीवन, है समग्र-वांग्मय,
'रहनि' उज्जवल है, मृत्यु है, चिर-रहस्य्मय।
युग-मानस रखे उन्हें, देश-ध्वज में जीवंत,
युवा-नेता उमंगी, देखें देश-हित में वसंत।
- मीरा भारती
पुणे, महाराष्ट्र
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