कौस्तुभ के प्रश्न : मीरा भारती
एक शुभ लग्न में होता
शुभ परिणय बंधन
इक वीर सैनिक का,
सामान्य निसर्ग-प्रेयसी से।
आयु के षोडश बसंत,
थे, कोमल उसके मन में।
पिता ने पूछा था,
सैनिक पति है
क्या तेरे मधुर स्वप्नों का
कौस्तुभ-मणि?
दे दी उसने सहज स्वीकृति।
नव-प्रणय की अनुभूति,
रही कलिका-रूप स्मृति।
घटित अनपेक्षित हुआ ,
सेना-नायक का आदेश-पत्र,
सरहद के अदृश्य गिरि-कन्दर से।
प्रणय-गीत अपूर्ण रहा,
सुहाग-शय्या करे विलाप
विरहिणी की व्यथा से।
रण-वाद्य गर्जन रोर न थमा।
उस दिन शून्य में विलीन होते
प्रेम-गीत लौटते,
वीर सैनिकों के कन्धों पर वह भी ।
मौन, मैडल-सुशोभित।
जय-ध्वनि हो रही,
श्रवण- संवेदना लुप्त है ।
दूर कहीं देखते, पत्थर के नैन।
तड़पें जो बिन जल,
मन हुआ विकल,बिनु बैन।
नन्हा कौस्तुभ पूछ रहा,
तिरंगे पर लाल रंग का सबब।
वह वीर सैनिक लौटा है घर।
बनाकर उसे सामान्य से विशिष्ट।
युद्ध-वैधव्य के उपहार-संग,
सौंपता उसे,
नव - कौस्तुभ के मानस-निर्माण
का दायित्व ।
युद्ध की कठोर-ध्वनि मध्य,
कैसे देगी, अबोध कौस्तुभ के
प्रश्नों के उत्तर ?
- मीरा भारती,
पुणे, महाराष्ट्र
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