आइये पढ़ते हैं प्रतिभा जैन जी द्वारा लिखी रचना - गौरैया
गौरैया
कहाँ गए वो दिन ?
अब गौरैया छत पर नजर नहीं आती
अब मेरे आंगन में ची -ची सुनाई नहीं देती।
कितना सुंदर था हमारा बचपन
जुड़ा पूरा परिवार
दादा -दादी के साथ मस्ती
दादा के साथ मिल कर गौरैया को पकड़ना के तरीके सीखना
सफ़ेद धागा एक छड़ी में बांध कर
उस पर बड़ी टोकरी रखना फिर नीचे गेहूं के दाने डालना
पूरा दिन गौरैया का इंतजार करना जैसे ही गौरैया दाने खाने आए छड़ी को खीच लेना फिर
दादी के साथ मिल कर गौरैया को लाल, हरे,नीली रंग में रंगना और उड़ा देना।
सुबह सुबह मम्मी का उठाना
देख तेरी गौरैया छत पर आ गई
अब देखने को नहीं मिलती।
हमारे शहर में अब गौरैया नहीं मिलती
बचपन की यादें पन्नों पर लिखी मिलती।
नई यादें लिखने को नहीं मिलती
अब घर में दादा -दादी के साथ रहने को नहीं मिलता।
-प्रतिभा जैन
टीकमगढ़, मध्य प्रदेश
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रचना