आइये पढ़ते हैं मीरा भारती द्वारा लिखी रचना - हरित नवल होली
मैत्री, एकता के प्रेम-मिलन
का हिय-मधुपर्व रंगोत्सव।
निसर्ग-चरण पायल - धुन
हुई अब दूर की सुहावन।
तरुवर के हरित रंग में,
अस्मिता है जन-भावन।
ऊर्जा संग्रहण हेतु करें,
कंडे से होलिका-दहन।
पतझड़ में, शाख से पत्ते
टूट कर अलग हो रहे।
कलुष, अहं, कटुता -तत्व,
रुक्षता भी विलग हो रहे।
अभाव में भी है प्रेम-भाव
जहाँ वैमनस्य है निरस्त।
चहुं दिश राग-रंग निखरें,
आम्र-मंजर, चंदन-कलित।
उपवन-पुष्पों से, गृह -सज्जा,
संवेदनाओं से शुभ-श्रृंगार।
ग्राम-संगीत, भक्ति-मय नृत्य,
जोगीरा संग मजीरा झंकार।
स्नेह- स्वीकृति के मृदु रंग,
मिलें जलवायु से प्रिय मन।
जैविक होली ही सभी खेलें,
पलाश गुलाल से सजें तन।
लाल रंग में ऊर्जा का प्रवाह,
नित प्रेम-संबंध का निर्वाह।
पीत में स्वर्णिम युग-विचार,
हरित होली ही प्रेम उपहार।
श्याम रंग अंतरिक्ष विहित,
अहं-अस्तित्व है समाहित।
नीला जल, वायु भी है नील,
जन-प्राण प्रकृति-सा सरल।
करें शुष्क रंग का उपयोग,
पंचतत्व नेह से जल-संचय।
संत कबीर का वचन-सत्व,
सुभग संकल्प भ्रातृत्व ध्येय।
- मीरा भारती,
पुणे, महाराष्ट्र
Tags:
रचना