गुरु दाता ज्ञान के इनका करो सम्मान।
इनके समान न दूजा कोई इस जहान।।
प्रेम करो गुरुदेव से चरणों की अरदास।
चरणों में ही पड़ा हुआ है भक्ति मुक्ति का द्वार।।
गुरु के अनेकों रुप देखो इनका स्वरूप।
प्रथम गुरु मात-पिता दाता शब्द ज्ञान के।।
दूजा गुरु शिक्षाविद् दीजो ज्ञान विज्ञान अनुप।
तृतीय गुरु आध्यात्मिक धर्म सत्कर्म भक्ति का दिये उपदेश।।
गुरु की महिमा तीनों लोक में न्यारी।
ज्ञान दिये शिष्य को आपकी बलिहारी।
गुरु पर मेरा तन मन न्योछावर।
आप से बड़ा न कोई ईश्वर।।
कृपा करें गुरुदेव चरणों में दें स्थान।
युगों - युगों तक करता रहूॅं ,
आप ही का गुणगान।।
रचनाकार - प्रेम शंकर शर्मा
कैमूर, बिहार
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