“दिवाली हो ऐसी अपनी” (कविता)
एक दीप जले मन में ऐसा कि, जीवन मुकुलित हो जाए।
प्रेम रूपी अविरल प्रवाह में, जग प्रफुल्लित हो जाए।
हर उत्सव की मधुर घड़ी में, एक संकल्प उठा लेना।
राग, द्वेष, तम दूर भगा कर, मानवता अपना लेना।
हर घर रौशन हो जगत में, यत्न ऐसा करते जाओ।
हर इंसां के दामन को, खुशियों से तुम भरते जाओ।
हर मनुष्य के जीवन में, सुख, शांति का उद्गार करो।
इस पावन राष्ट्र की एकता पर, फिर से तुम विचार करो।
जब धरा हो झिल–मिलाती, सितारों के जैसी अपनी।
जन–जन हों खुशहाल यहां, दीवाली हो ऐसी अपनी।
एक दीप जले मन में ऐसा कि, जीवन मुकुलित हो जाए।
प्रेम रूपी अविरल प्रवाह में, जग प्रफुल्लित हो जाए।
- श्याम बिहारी मधुर,
कवि, शिक्षक एवं समाजसेवी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
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