मेरी प्रेरणा
तुम ही मेरी प्रेरणा, मेरे जीवन की शिल्पकार
तुने ही तो दिया है मेरे व्यत्तित्व को निखार
तुझसी बनूँ , तुझसी दिखूँ, तेरी परछाई बनूँ
तेरे साए में माँ रोज नई खुशियाँ बुनूँ।
चलूँ उस राह जो मुझे तूने दिखाई
तेरे संघर्ष देख मैं खुद को सशक्त बनाती
तेरे दामन से है लिपटी मेरी सारी दुनियाँ
तेरी बाहों में हैं दोनों जहाँन की खुशियाँ।
तेरी मुशकिलों को देख कभी ना घबराना
परिवार की खातिर हर मुशीबत से भिड़ जाना
मीठी वाणी से रूठे को पल में मनाना
सरल स्वभाव के प्रेम पास से सबको बाँधना।
देख खुद को पूँछू आईने से सवाल
क्या मेरा व्यत्तित्व भी है मेरी माँ के समान
भटकूँ जो कभी तो मेरा ध्रुव तारा है तू
तुझसे ही प्रेरित हो मैं सारे काम मैं करूँ।
रचनाकार - दीपा शर्मा
दिल्ली
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