द्रोपदी! तुम ही कृष्ण बन जाओ
आओ द्रोपदी कमान संभालो ।
वस्त्र के साथ अस्त्र भी संभालो।।
स्त्री की मर्यादा संभालो।
पद की गरिमा संभालो।।
माना, बदल गया है युग,
मगर आज भी बैठे है।
सैकड़ो कौरव मौके की राह में।।
आज भी बैठा है सकुनी।
अपनो की आढ़ में ।।
लड़ने और लड़ाने को तैयार।
महाभारत रचाने को तैयार।।
आज भी वीवश है गांधारी।
आज भी मौन बैठा है बुधिमानो की टोली।।
पितामह द्रोण और कर्ण भी ।
रिश्ते और सत्ता के वशिभूत हैं।।
विद्या होते हुए भी,
मूर्खता से परिपूर्ण है।।
पांडवो की तो बात ही छोड़ो,
जकड़े पड़े है ।।
राजमाता को तो।
इस अनर्थ का आभास ही नही़।।
और कृष्ण, श्री कृष्ण तो
कलयुग के प्रवेश से ही पत्थर की मूरत बन बैठे है।
मगर आज भी द्रोपदी हो रही, दुर्योधन की शिकार।।
द्रौपदी, तुम ही कृष्ण बन जाओ,
महाकाली सा रन मचाओ।
पापियों को शक्ति याद दिलाओ ।।
रचनाकार- स्मृति सुमन
पता- कफन लतीफ़,
मुजफ्फरपुर, बिहार
Tags:
रचना