परी ज़मीं पर आई है
सूने घर के आंगन में
खुशियाँ ही खुशियाँ छाई है,
नन्ही सी इक परी ज़मीं पर
शोर मचाते आई है।
नन्ही-नन्ही क़दमों वाली
होंठो पर जिसके लाली,
गला सुराही जैसी उसकी
काली सी भौंहें वाली।
फूलों सा मुखड़ा है उसका
सांसे जैसे महक रही,
किलकारी होंठो पे झलके
चिड़ियों सी वो चहक रही।
चाँद चमकता चेहरा जैसे
चन्दा की परछाई है,
आसमान की हूर परी जो
उतर ज़मीं पर आई है।
सूने घर के आंगन में
खुशियाँ ही खुशियाँ छाई है,
नन्ही सी इक परी ज़मीं पर
शोर मचाते आई है।
रचनाकार- शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती (उ, प्र,)
Tags:
रचना