प्रेम सुमंगल-धाम
प्रेम बनाता हर तरह, जीवन को सम्पन्न ।
मित्र शांति उत्कर्ष से, रहता नहीं विपन्न।।
प्रेम मिटाता दूरियाँ, मन के कलुषित भाव ।
जोड़े रहता डालकर, शुचि अपनत्व -प्रभाव ।।
प्रेम पूर्वक ही सभी, रहते हैं जब साथ ।
सब कामों में अग्र आ, मुदित बँटाते हाथ ।।
प्रेम-आपसी मदद से, खुलते उन्नति -द्वार ।
चढ़ता प्रगति - पहाड़ पर, यह समाज -संसार।।
सज्जनता का वंशधर, प्रेम श्रेष्ठ उपहार।
लेते -देते ही रहें, हर जन यामिनि-वार ।।
मानवता के मूल्य जो, प्रेम उन्हीं में एक ।
इसके आगे छल-कपट, घुटने देते टेक ।।
अगर जीतना चाहते, जीवन का संग्राम।
"निशिहर" सबसे कीजिए, प्रेम सुमंगल-धाम।।
रचनाकार- आचार्य सूर्य प्रसाद शर्मा "निशिहर"
कृष्णा नगर, रायबरेली (उ.प्र.)
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