हठ करता भक्त
तेरी ही प्यास इस जगत मे है प्रभु
मिलन की आस इस नैनन में
जैसे जल बिन मछली तड़पे वैसे
ही तेरे दर्शन को आत्मा तरसत है प्रभु ।।
कब तक मेरी बिगड़ी बनाओगे
कभी तो अपने पास बुलाओ प्रभु
कब तक इस मोह माया के रस्सी से बंधे रहूँ।
कभी तो दर्श दे जाओ प्रभु ।।
स्वप्न मे खूब निहारती हूँ आपको
कभी हकीकत मे तो सामने आओ प्रभु ।।
मन उदास, अब नही इस तन मे जान,निर्मोही इस जगत से मैं
तेरे चरणों की धूरि माथे लगाऊँ प्रभु ।।
दिया सब कुछ तुने,अब सब तुझे
लौटाऊँ प्रभू मैं तेरे पास आना चाहूँ प्रभु ।।
हाथ जोड़कर करूँ प्रार्थना सुन ले विनती मेरी, धीरे-धीरे इस शरीर से निकल रही है अब जान मोरी ।।
रह-रहकर तरसी है ये अँखिया खूब, अबकी बार दर्श ना दियो तो भेज दियो पाताल मोहि ।।
ना स्वर्ग, ना नरक की इच्छा मोहे
ना सुख, दुख की आस, तेरी भक्ति मे काटूँ बची जीवन सारी यही एक अरदास ।।
- श्रीमती निर्मला सिन्हा (स्वतंत्र लेखिका)
ग्राम जामरी डोंगरगढ छत्तीसगढ से एक सोशल वर्कर
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भक्ति रचना