शिशु शिक्षा (शैल सुता छंद)
नलिन सिता समता रख के गुरु, मानक रूप रहें मन में।
प्रमुदित भाव रहें शिशु प्रेरित, बुद्धि जगे अपनेपन में।
बचपन भूख जगे प्रिय ज्ञानद, शिल्प रचे उँगली शुभदा।
परिधि प्रभा बनते सह धीरज, देकर विज्ञ रहें सुुखदा।
शिशु समुदाय रहें स्तर भास्कर, विश्व सु-पूजित हो गरिमा।
रुचिर पुरा भुवि ग्राम सु-कौशल, सीख बनें जन धी महिमा।
जनपद सर्व रहें शिशु उन्नत, त्याग समत्व क्षमा सविता।
प्रतिनिधि हिन्द रखें जग शोधित, पुण्य प्रतीक रहें अजिता।
{ सिता= कमल
सविता =सूर्य, विज्ञ= विद्वान
भुवि= स्वर्ग}
- मीरा भारती
पटना, बिहार।
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