अखंड सुहाग का वरदान दे दो माँ
हे माँ सावित्री, आपके चरणों को छूकर करती हूं प्रणाम.....
हे माँ, अखंड सुहाग का हमें दे दो वरदान........
पूरी दुनियां आपकी पति भक्ति की गीत हैं गाती.......
आपके सम्मुख बड़े प्रेम से ज्योत है जलाती....
आप प्रेम हैं, तपस्या हैं, आप ही जगदम्बा हैं...
सच्चा प्रेम होने का प्रमाण भी आप स्वयं हैं...
वट वृक्ष पर सारी औरतें अखंड सुहाग की कामना कर रही हैं माँ.....
स्वयं आकर अपना आशीष दे जाएं मां.....
डलिए में कुछ फूल, फल सिंदूर सजाकर लाई....
स्वीकार कर लो माँ, जो भी मैं लाई.....
यमराज ने भी आपकी पति भक्ति के सामने हार मानी.…
दिया सत्यवान को जीवन दान, सौ पुत्रों की माँ होने की आशीष भी दे डाली.....
सोलह श्रृंगार कर आई हूँ वट वृक्ष के पास......…
मेरे सजना हमेशा रहे मेरे साथ........
अपने सजना के दिल में बसी रहूं....
उनका प्यार, आशीष सदैव पाती रहूँ ......।
✍️ उमा "पुपुन" की लेखनी से..
रांची, झारखंड
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रचना/संपादकीय