किताबों की दुनियाँ
इल्म, अकल, अकीदत की, ये होती अद्भुत आगार। गुरवत भी मिटती है इनसे करती है, जीवन श्रृंगार।।
पुस्तक के वाचन से पाते, हर विषयों का नीत हम ज्ञान।
शोहरत भी उनको दिलवाती, लिखते है जो ग्रंथ महान।।
कुछ तो हमें हंसाती है, कुछ तो हमें रुलाती है।
सच्चे मित्रों की भांति वे, अपना फर्ज निभाती है।।
नया सिखाए प्रतिपल वे, पुस्तक ज्ञान की सागर।
ज्ञान पुंज वे ज्ञान प्रदाता, सद बद बुद्धि की गागर ।।
सही पुस्तकों से हम पाते, सुधी जनों के दिव्य विचार।
दुनियां की गतिविधियों का, मिलता हमको ज्ञान अपार।।
कितने अवतारी पुरुषों ने, पाया इनसे भव्य विचार।
इनके नियमित पाठन से, मिटता संशय व कुविचार।।
कठिन समय में पुस्तक होती, सचमुच जीवन साथी।
कवि और साहित्यकारों की, जीवन भर की थाती।।
पुस्तक से ही वर्ण सीखते, पाते है लौकिक सम्मान।
जीवन के हर प्रश्नों का, मिलता हमको समुचित ज्ञान।।
शोहरत और इल्म है देती, रोशन इससे जहां ने माना।
ईश्वर की नेमत है किताबें, पढ़कर हमने यह पहचाना।।
इसीलिए तो कहता हूं, पुस्तक से तुम कर लो प्यार।
अच्छी है तो, सचमुच मानो, कर देगी ये बेड़ा पार ।।
रचनाकार - डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
सुंदरपुर, वाराणसी
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रचना/ संपादकीय