कृष्ण सा "किशू " है तू
क्या कहूं कितना सुखद पल था,
दर्द था पर मरहम सा था,
मातृत्व के सुख से तुमने मुझे सजाया था..
मुख पर तेज, गोरा सा मुखड़ा, डिंपल से सजती मुस्कान तेरी प्यारी,
दुनिया मुझे तो लग रही थी जन्नत से भी प्यारी...
तुम्हारे नन्हे नन्हे हाथों का स्पर्श मुझे आनंदित कर रहा था,
कृष्ण सा "किशू" मेरे प्यारी थपकियों से सो रहा था..
न मुझे दिन की सुध थी, न रात होने की खबर थी,
हर पल हर वक्त तेरे गाल पर वो डिंपल वाली हंसी के लिए जान लुटाती थी..
ऋतु आए , ऋतु बदले, कितनी हरियाली आई,
"मां" शब्द सुन तेरे मुख से, अंखियां खुशी से भर आई..
"शुभम" से अब तू "शुभ" कहलाया,
मां, पिता के प्यार स्नेह को कोई कहां भूल पाया..
क्या हुआ जो कुछ मीलो की दूरी पर हम हैं,
प्यार, स्नेह की डोर कहां कम है...
जन्मदिन पर हवाओं संग भेज रही हूं शुभाशीष,
कामयाबी के मंजिल को पाना, डिंपल वाली तेरी हंसी बनी रहे हमेशा, देते हैं हमलोग यही आशीष..
🖊️उमा पुपुन
रांची, झारखंड
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रचना/ संपादकीय