ग़ज़ल
बेटियों की उम्मीदें दम तोड़ती,
हैवानियत सिर चढ़कर बोलती।
इंसानियत शर्मसार हो गई,
अस्मिता पर आघात झेलती।
जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना गुनाह,
आरोप-प्रत्यारोप परतें खोलती।
यह सियासत शतरंज की बिसात,
कठपुतली के अंदाज में डोलती।
कलेजा छलनी छलनी हो गया,
देश की आहत आत्मा बोलती।
रचनाकार- दिनेश चंद्र तिवारी
इन्दौर, मध्य प्रदेश
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गजल/ संपादकीय