रक्षा का निहितार्थ होता है, रक्षा बंधन का पर्व
पर्व और उत्सव, राष्ट्र की जीवनी शक्ति के माप होते हैं। भारत देश में एक कहावत प्रचलित है कि, सात वार, नौ त्यौहार, मतलब यहां हफ्ते में सात दिन होते है, परंतु इन सात
दिनों में हम नौ त्यौहार मनाते है। बड़ी समृद्धशाली, गौरवमयी परम्परा हमारी संस्कृति की रही है।
मित्रों!
रक्षा बंधन पर्व भी उनमें से एक है। यह पर्व पारिवारिक एक
बद्धता व एक सूत्रतता का सांस्कृतिक उपाय रहा है।
किसी कवि ने लिखा है...
राखी के पावन धागों में छिपा बहन का पावन प्यार।
बहनों के रक्षा का बंधन, है रक्षा बंधन त्योहार।।
रक्षा बंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया
जाता है, इसीलिए इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी पुकारते हैं। इसमें श्रवण नक्षत्र का संयोग भी होता है। इस पर्व को ऋषि तर्पण भी कहते हैं। ऋषि तर्पण का अर्थ होता है ऋषियों को संतुष्ट करना। ऋषियों के तपोबल से जो ज्ञान, वेद ज्ञान की निधि हमे प्राप्त है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करना है।
रक्षा सूत्र एक पवित्र धागा है, जिसमें शुभ भावनाओं एवं संकल्पों का समावेश होता है, जिसे बांधने पर इसका असीम
सामर्थ्य दिखलाई देता है। इसी कारण बहनें भाइयों के दीर्घजीवी होने की कामना से इसे भाइयों की कलाइयों पर बाधती हैं।
कहा जाता है कि दानवों व राक्षसों के युद्ध के समय इंद्र की
पत्नी इंद्राणी ने इंद्र के मंगल और विजय की कामना के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। इस युद्ध में इंद्र को विजय श्री मिली थी।
ऐताहसिक विवेचन में जब राजपूत युद्ध में लड़ने हेतु जाते थे, तब उनके घर की महिलाए उनकी विजय श्री हेतु रक्षा सूत्र बांधती थी। कहते हैं कि, रानी कर्णावती ने मेवाड़ की रक्षा हेतु हुमायूं को राखी भेजी थी, और हुमायूं ने कर्णावती के लिए युद्ध कर उसे विजय श्री दिलवाया था।
प्राचीन समय में गुरुकुलों में शिक्षारंभ के समय गुरुजन अपने शिष्यों को रक्षा के धागों को अभिमंत्रित करके रक्षा सूत्र बांधते थे। आज भी यह पर्व कई राज्यों में मनाया जाता है।ब्राह्मण अपने यजमानों की रक्षा हेतु निम्न मंत्र को पढ़कर रक्षा सूत्र बांधते हैं ।
एन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महा बलः।
तेन त्वाम प्रतिबद्ध्यामी, रक्षे मा चल मा चल।।
अर्थ रक्षा के जिस बंधन से राक्षस राज बलि को बांधा गया था उसी से मैं तुम्हें बांधता हूं, हे रक्षा सूत्र तूं भी अपने धर्म पर डटे रहना।
वैदिक रक्षा सूत्र में दूर्वा, अक्षत, केसर, चंदन, सरसों के दाने व स्वर्ण का प्रयोग होता है जिसका अर्थ होता है,
दूर्वा की भांति भाई हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैले।
अक्षत पूर्णता की भावना का प्रतीक, श्रद्धा अखंड और अटूट बनी रहे।
केसर की प्रकृति तेज होने के कारण, जीवन तेजस्वी हो। ऐसी मंगल कामना बहने करती है।
चंदन भाई के जीवन में पवित्रता, सज्जनता व संयम की सुगंध फैलाए।
सरसो का दाना तीक्ष्ण होता है, समाज द्रोहियों को सबक सिखाने में हम तीक्ष्ण बने रहें।
रक्षा सूत्र सात प्रकार का होता है, जो निम्नानुसार होता है।
विप्र रक्षा सूत्र।
गुरु रक्षा सूत्र।
मातृ पितृ रक्षा सूत्र।
भात्र रक्षा सूत्र।
गौ रक्षा सूत्र।
वृक्ष रक्षा सूत्र।
स्वस्री रक्षा सूत्र।
अगस्त संहिता, भविष्य पुराण में रोग, शोक के निवारण करने व भाई के दीर्घायु और कल्याण के लिए रक्षा सूत्र बांधते हैं।
लेखक- डॉक्टर डी आर विश्वकर्मा
पूर्व जिला विकास अधिकारी
सुंदरपुर वाराणसी
वरिष्ठ साहित्यकार, कई राज्य स्तरीय पुरस्कारों के विजेता।