गजल - बेवजह दर्द बढ़ाने की जरूरत क्या थी
इतना बेदर्द बन गया कैसे,
बेवजह दर्द बढ़ाने की जरूरत क्या थी।
दिल ये टूटा हुआ है अर्से से,
ज़ख्म दिल के दुखाने की जरूरत क्या थी।
बेवजह रूठ कर जाने वाले,
मुझको अपना बनाने की जरूरत क्या थी।
तूने हर बार दिया जख्म मुझे,
फिर ये एहसास जताने की जरूरत क्या थी।
हर सवालात तेरे जख्मी थे,
ऐसे हालात में सवालों की जरूरत क्या थी।
इतना खुदगर्ज हो गया कैसे,
सिलसिले वार पे वार की जरूरत क्या थी।
फैसला करते हुए सोचा होता,
फासले हो तो फैसलों की जरूरत क्या थी।
अक्सर यादों में होस आता है,
इस कदर साथ निभाने की जरूरत क्या थी।
इतना बेदर्द बन गया कैसे,
बेवजह दर्द बढ़ाने की जरूरत क्या थी।
साहित्यकार व लेखक-
आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर
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रचना/ मनोरंजन/ संपादकीय