आओ हिन्दी के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को सीखें
स्मरण रहें कि हृस्व स्वर में केवल एक मात्रा होती है एवं इसका उच्चारण अल्प समय और अल्प ध्वनि में होती है।
इसकी कुल संख्याएं 4 होते हैं :- अ, इ, उ एवं ऋ।
काव्य-जगत् में इसकी सांकेतिक भाषा (।) होती है।
जबकि, दीर्घ स्वर में दो मात्राएं होते हैं एवं हृस्व स्वर की अपेक्षा इसके उच्चारण में दोगुना समय लगता है।
इसकी कुल संख्याएं 7 होते हैं :-
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ और औ।
काव्य-जगत् में इसकी सांकेतिक भाषा(s)होती है।
प्लुत स्वर :- प्लुत स्वर में तीन मात्राएं होती हैं एवं इसका अधिकांश प्रयोग संस्कृत भाषा में की जाती है जिसे देववाणी भी कहते हैं।
ज्ञात हो कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है एवं यह वैदिक काल से बोली जाती है एवं यह आर्यों की भाषा रही है।
उदाहरणार्थ :- ओ३म , हरिओ३म इत्यादि।
अनुस्वार:- किसी अक्षर या शब्द के ऊपर (.) दिया जाता है एवं इसका उच्चारण नाक से की जाती है।
उदाहरणार्थ :- सुंदर, कंचन, वंदना, चंचला इत्यादि।
जबकि, अनुनासिक में किसी अक्षर या शब्द के ऊपर चंद्रबिंदु दिया जाता है।
यति :- काव्य-जगत् में जब हम कोई काव्यपाठ करते हैं तो किसी पंक्ति के बीच में ठहराव होती है, जिसे 'यति' कहा जाता है।
- प्रकाश राय (सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार, विचारक व समाजसेवी)
सारंगपुर, मोरवा, समस्तीपुर, बिहार
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