बेटी मेरी परछाई है

बेटी मेरी परछाई है
नन्ही सी परी है तू
आसमान से आई है। 
फूल नहीं कली है तू
बेटी मेरी परछाई है।। 

आंगन की बिजली है 
सुनहरे रंग की तितली है, 
भंवरों के पीछे दौड़ने वाली
मन मौजी मन चली है। 
कोना-कोना महकजाये
मुस्काती मंद पुरवाई है। 
फूल नहीं कली है तू
बेटी मेरी परछाई है।। 

तुम्हारी आहट से ही
पापा के चेहरे पे मुस्कान है, 
तुम पर ओ मेरी गुड़िया
मेरा सबकुछ क़ुरबान है। 
सूने आंगन में आकर
खुशियां तूने फैलाई है। 
फूल नहीं कली है तू
बेटी मेरी परछाई है।। 

- शेख रहमत अली "बस्तवी"
बस्ती (उ, प्र,) 

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