हाल ए दिल बयां करूं भी तो कैसे
नानी, दादी के किस्से हो गए फजां से गुम,
अब तो दरो दीवार से लोरी की गूंज सुनाई देती है...
हमने जरूरत से ज्यादा खुशियां देने की ठानी थी,
आंसू के सैलाब में, तन्हाई अब दोस्त हमारी है...
पता नहीं गलती से गलती कहां हो गई,
अब तो मोबाइल पर भी तस्वीर कहां तुम्हारी है...
सोचा था उसके हर पल का हिसाब रखूंगी,
गिनने को तो वक्त भी अब कहां बाकी है...
हाल ए दिल बयां करूं भी तो कैसे,
मेरी दुखती कलम में रोशनाई कहां बाकी है..
शीशे के टूटने की परवाह कौन करे भला,
अश्कों के संग बिखरने की बारी हमारी है...
उमा पुपुन की लेखनी से...
रांची, झारखंड
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रचना/ संपादकीय/ मनोरंजन