बेटियाँ
बंजर सी ज़िंदगी में उपवन हैं बेटियाँ ,
बेटों से तनिक भी नहीं कम हैं बेटियाँ ।
बहाने बनाते जब सभी हाज़िर हैं बेटियाँ,
परिवार का दुःख बाँटने में माहिर हैं बेटियाँ।
अपना ही परिवार बेटे हैं सवाँरते ।
दो घरों को अकेले सजातीहैं बेटियां।
सुख में खुशियाँ मनाती हैं बेटियां,
दुःख की घड़ी में संबल बन जाती हैं बेटियाँ।
पुष्पों सी हर आँगन में महकती हैं बेटियाँ,
ना जानें कुछ के दिल में क्यों खटकती हैं बेटियाँ।
यूँ तो निर्मल मन की होती हैं बेटियाँ,
जरूरत पड़े तो खुद को बदलती हैं बेटियाँ।
आज तो हर क्षेत्र में कामयाब बेटियाँ,
आसीन ऊंचे पदों पर नायाब बेटियाँ।
हर रिश्ते को बड़े स्नेह से सवांरती है बेटियाँ,
खुद सेतु बनकर दो कुटुंब सँभालतीहैं बेटियाँ।
रचनाकार- चंद्रकांत पाण्डेय
मुम्बई/महाराष्ट्र
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