हाय ! मैं क्या बोलूं
नफरत, फितरत, मजहब, संगीनें मै क्या बोलूं
घुटता दम इंकलाब का अब मै क्या बोलूं
छदम लोकतंत्र, छदम राष्ट्रवाद, छदम राष्ट्रहित,
हाय! कैसी ये मज़बूरी है
चलती लेखनी अब सोने के सिक्कों पर मैं क्या बोलूं
बंदेमातरम सिर्फ मंचों पर इंकलाब अब घुटनों पर है
सम्बाद, धरने, विरोध, प्रदर्शन सब तय करती संगीने अब क्या बोलूं
संविधान पर धूल जमा है न्याय देते अब बुलडोजर
हाय!मै अब क्या-क्या बोलूं
युवा साहित्यकार-
वैभव पाण्डेय
कादीपुर, सुल्तानपुर
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