आइए पढ़ते हैं शेख रहमत अली बस्तवी जी द्वारा लिखी गजल

                ग़ज़ल
दिल नशीं तुमसे  प्यार कर बैठे। 
ख़ुद  को हम  बेक़रार  कर बैठे।। 

प्यार शिद्दत  से  किया है तुमसे। 
जाने   क्यों  ऐतबार   कर  बैठे।। 

एक वादा जो मुस्कुरा के किया। 
उम्र   भर    इंतज़ार   कर   बैठे।। 

तन्हां भटका है इस क़दर  कोई। 
ज़िंदगी  अपनी  ख़ार  कर  बैठे।। 

आँखों से अश्क यूं  बहे "रहमत"। 
दिल   मिरा  तार-तार  कर  बैठे।। 

- शेख रहमत अली" बस्तवी"
बस्ती (उ, प्र,) 

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