आओ हम नजरें घुमाएं गाँव गलियों में

आओ हम नजरें घुमाएं गाँव गलियों में
आओ हम नजरें घुमाएं गाँव गलियों में,
जहाँ बीता बचपन छूटा वो ठिकाना है!

पढ लिख कर के निकल गए गाँव से जो,
बस गए शहरों में गाँवों में विराना है!

आस लिए माता पिता सपने सजाते रहे ,
परदेश गए सभी बेटों को दिखाना है!

बरसों बरस बीतें गए गाँव नहीं लौटे,
कमाई के चक्कर में उलझा जमाना है!(१)

गुमसुम गलियों को ताँकती बोझिल आँखें,
घरों में है वृद्धजन याद ये दिलाना है!

रोजगारी की है कमी पलायन मजबूरी,
परिवार टूटने के संकट मिटाना है!

जिंदगानी का आनंद परिवार के ही संग,
पालकों की शरण में जीवन बिताना है!

सार्थक प्रयास करें गाँवों में ही काम मिले,
माता पिता कुटुंब का फर्ज भी निभाना है!(२)

रचनाकार- अरविंद सोनी "सार्थक"
रायगढ़, छत्तीसगढ़ 

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