करवा चौथ
वर्षों का इंतज़ार खत्म हुआ ,
आया समय प्यार सवाँरने का ।
करवा चौथ सुहाग के प्यारे पर्व पर,
आ गया दिन गगन निहारने का।
पूर्ण दिन व्रत निर्जला रहकर ,
प्रियतम की रख खुशी कामना।
माँ पार्वती का कर स्मरण,
करतीं पति खुशीहाली की याचना।
बड़ा विशिष्ट पर्व होता यह,
प्रत्येक सुहागन नारी का।
वे प्रतीक्षारत रहती हैं,
इस त्योहार की बारी का।
पूर्ण दिवस भूखी प्यासी रह ,
देर रात्रि चंद्र को अर्घ्य देतीं।
पति के सुखी समृद्ध होने की,
माँ पार्वती जी से कामना करतीं।
प्रथा यह कोई नूतन नहीं ,
वरन यह तो बड़ी पुरानी है।
हमारे शास्त्रों में व्यस्थित वर्णन मिलता,
अत्यंत प्रभावी इसकी व्रत कहानी है।
पूर्ण सरसता जीवन में घुले ,
स्नेह की अविरल धार रहे।
उनमें कटुता का नामोनिशान ना हो ,
दोनों के जीवन में महकता प्यार रहे।
रचनाकार- चंद्रकांत पांडेय
मुंबई / महाराष्ट्र
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रचना