समय का चक्र : डॉ कंचन जैन "स्वर्णा"
हर लफ्ज़ पर मतलब,
और हर मतलब का लफ्ज़,
यही तलाशता रहा जिंदगी की किताब में,
और आज जिंदगी की आखिरी किताब के पन्ने पर सुकून तलाशता है।
चलता रहा,
स्वार्थ में जिंदगी भर
और आज एक सुकून का कदम तलाशता है।
सत्यता को पर्दे में रखकर ज़िन्दगी भर झूठ की परतें बुनता रहा,
और आज जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर सत्यता तलाशता है।
खुद को खुदा मान छलता रहा जिंदगी भर,
आज अपनी बारी में,
खुदा को तलाशता है।
कसम खाता रहा,
ज़िन्दगी भर अपनी उम्र की,
ज़िन्दगी के अन्तिम क्षण में हरेक चित्र निहारता है।
अपने चरित्र को जिंदगी भर इंद्रधनुष बनाकर चित्र को संवारता रहा।
आज अपने ही चित्र में अपने चरित्र की परछाइयां निहारता है।
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रचना / संपादकीय/ मनोरंजन