जीना है जिंदगी किश्तों में

 जीना है जिंदगी किश्तों में 
 जीना है जिंदगी किस्तों में,
फिर क्या बचा इन रिश्तों में।
घूमा हूं जहां के कोने कोने मे,
नहीं मिला वहां कोई रिश्ते में।

हैसियत का खेल है रिश्तों में,
बड़ा अब झोल है रिश्तों में।
नही अनमोल कुछ रिश्तों में,
बस सियासी खेल है रिश्तों में।

न रही फिक्र रिश्तों में,
न रहा प्यार रिश्तों में।
निकले गद्दार रिश्तों में,
किये हैं वार रिश्तों में।

खाये हैं जख्म रिश्तों में,
टूटते अरमा हैं किश्तों में।
न रहा खाश कुछ रिश्तों में,
यही आलम है आज रिश्तों में।

युवा साहित्यकार व लेखक -
आशीष मिश्र उर्वर
कादीपुर, सुल्तानपुर उ.प्र.

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